अलविदा तो कह दिया प्यार की उस हसीन दास्तान को,
आँखों से बहा तो दिया प्यार के उस असीम सागर को...
तो फिर क्यूँ आज भी कुछ टीस बाकी है,
दिल सहमा हुआ सा, और हर सख्स सवाली है?
कोई आशा, कोई आवाज़, कोई रहनुमा ना रहा,
प्यार के आशियाने में ज़िंदगी का निशान ना रहा.
प्यार का झूठा रूप क्या फिर धरा था उसने?
वो बेवफा क्यूँ थी जब प्यार किया मैने?
क्या आई थी वो अपना दिल बहलाने के लिए?
या था कोई रूप धरा उसने असलियत छुपाने के लिए?
ये प्रश्नचिन्ह हर याद के साथ मुझसे मिलते हैं,
मेरे आवेश, मेरे ज़ख़्मो पे नमक छिड़कते हैं,
असहाय सा पड़ा, याद करता हूँ उन वादों को,
उन नज़दीकियों, उन एहससों और उन हसीन शामों को.
सोचा था मैने, की प्यार की ये डगर सुहानी होगी,
कभी ना मिट सके, प्यार की वो अमर कहानी होगी.
नहीं सोचा था की तुम इतनी कायर भी हो सकती हो,
जीवन में सदा के लिए, किसी की नज़रों में इतना गिर सकती हो.
मैं खुश हूँ की तुमने बेहतर अवसर को चुन लिया,
कम से कम इसी बहाने, अपनी असलियत को उजागर तो किया!
2 comments:
भैया लिकखे तो बहुत मस्त हो औउर फोटू भी बहुते मस्त लगाए हो. इस कवि को कौउन कोने में छुपाय बैठे थे. अँगरेज़ी तो अँगरेज़ी मार हिन्दी में भी हिला दिए आप तो. अब अगला पोस्ट भोजपुरी में लिखिएगा का ?
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